Court Marriage: बॉलीवुड के ‘सर्किट’ यानी एक्टर अरशद वारसी इन दिनों सुर्खियों में हैं। वजह है 25 साल बाद शादी को कोर्ट में रजिस्टर कराना। अरशद ने 25 साल पहले 1999 में मारिया से शादी की थी। यह अब पंजीकृत है। जब अरशद वारसी से पूछा गया कि उन्होंने 25 साल बाद कोर्ट में शादी का रजिस्ट्रेशन क्यों कराया? तो उन्होंने कहा- हमने कानून के लिए ऐसा किया। ऐसा विचार मेरे मन में पहले कभी नहीं आया था। संपत्ति खरीदते समय या किसी भी समय दोनों में से किसी एक की मृत्यु होने पर कानूनी सबूत के रूप में इसकी आवश्यकता होती है।
भारत में Court Marriage के नियम क्या हैं?
इस खास स्टोरी में आप जानेंगे कि शादी के बाद कोर्ट रजिस्ट्रेशन जरूरी है, कोर्ट मैरिज के नियम क्या हैं, कौन सी कोर्ट मैरिज होती है, क्या समलैंगिक या विदेशियों को भारत में कोर्ट मैरिज का अधिकार है और यूसीसी लागू होने के बाद से क्या नियम बदल गए हैं उत्तराखंड?
विवाह प्रमाणपत्र कितना महत्वपूर्ण है?
विवाह प्रमाणपत्र यह साबित करता है कि आपका विवाह कानूनी रूप से पंजीकृत है। इस प्रमाणपत्र की आवश्यकता कई स्थितियों में होती है, जैसे पासपोर्ट बनवाना, संयुक्त बैंक खाता खोलना, जीवन बीमा पॉलिसी लेना या अपना उपनाम बदलना आदि। 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए विवाह पंजीकरण अनिवार्य कर दिया।
कोर्ट मैरिज कैसे की जाती है?
भारत में शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता है। पारंपरिक विवाह के अलावा भारत में विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत कोर्ट मैरिज का भी विकल्प है। यह उन लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प है जो सामाजिक समारोहों या खर्चों से बचना चाहते हैं या जिनके रिश्तों को सामाजिक स्वीकृति नहीं मिल रही है।
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किसी भी धर्म, जाति या वर्ग के लड़के-लड़कियां कोर्ट में जाकर शादी कर सकते हैं। खास बात यह है कि कोर्ट मैरिज में कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं होता। कोर्ट मैरिज ऑफिसर के पास सभी जरूरी दस्तावेज जमा करने के बाद लड़के और लड़की को सिर्फ हस्ताक्षर करने होते हैं। इसके बाद दोनों को कानूनी तौर पर पति-पत्नी माना जाता है।
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